अमन अहमद
इंसानियत को इस ब्रह्मांड का ताजदार बना दिया गया है, दुनिया की हर चीज इसकी सेवा में लगी हुई है। अल्लाह की दी हुई बुद्धि के साथसमंदर की गहराई और वायुमंडल की ऊंचाइयों को फतह कर लिया है। उसे हर काम में अपने जैसे इंसानों की जरूरत पड़ती है। दो रोटियॉं, कुछ गज कपड़े और अपना सिर छिपाने की जगह को बनाने में कई लोगों का संघर्ष और प्रयास शामिल रहता है। यही कारण है कि हर मज़हब में इंसानों की खि़दमत को विशेष तबज्जो दी जाती है।
इस्लाम में इसकीतबज्जो का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अल्लाह की इबादत और इंसान की मदद को एक पैमाना पर रखा गया है। इसलिए यदि कोई बीमारी के कारण रोज़ा नहीं कर सकता है, तो उसे इसके बदले गरीबों को खाना-खिलाने के लिए कहा गया है, यानि भूखे को भोजन कराना रोज़े के बराबर है।
नमाज़ सबसे महत्वपूर्ण इबादत है,पाक-ए-पैगंबर ने इसे अपनी आंखों की शीतलता कहा है। रोज़े के बारे में पवित्र पैगंबर ने कहा कि अल्लाह तआला कहता है कि रोज़ा मेरे लिए है और मैं रोज़ेदार को खुद इनामदूँगा। हज़ के बारे में कहा जाता है कि जिस तरह इस्लाम पिछले पापों को खत्म करता है, उसी तरह हज भी। लेकिन वह इंसान कौन है जो एक बेहतर इंसान है। इस बारे में, पवित्र पैगंबर यह नहीं कहते हैं कि जो सबसे अधिक इबादत करता है, वह जो सबसे अधिक रोज़े करता है, जिसने कई हज किए हैंवही बेहतर इंसान है।लेकिन यह भी कहा कि सबसे अच्छामोमिन वह है जो लोगों में आपसी तालमेल और भाईचारगी बनाए रखता है। मानवतावादी सेवा को इस्लाम में तरज़ीह दी जाती है।
हमें अल्लाह और पैगंबर के मार्ग पर चलने की भी जरूरत है, अपनी मादर-ए-वतन में, बिना भेदभाव केमज़हब-ए-वतनका पालन करते हुए सभी लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा कि मुहम्मद ने मानव जाति के साथ किया।